काबुल में नाश्ता, लाहौर में लंच और दिल्ली में डिनर

बात २००७ की है जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री डॉ मनमोहन सिंह फिक्की के मंच पर लोगों को सम्बोधित कर रहे थे।  उन्होंने पाकिस्तान के सवाल पर कहा था की "एक दिन ऐसा आएगा जब कोई नाश्ता अमृतसर में ,लंच लाहौर में और डिनर दिल्ली में करेगा।" उनकी यह प्रागुक्ति प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी पर अत्यधिक सटीक बैठती है।  क्योंकि मोदी ने नाश्ता काबुल में किया , लंच लाहौर में व डिनर के लिए वे दिल्ली में उपस्थित थे।                                                                                                                                                                            प्रधानमन्त्री मोदी जिस अप्रत्याशित तथा 'आउट ऑफ़ बॉक्स ' राजनीती के लिए जाने जाते है , पाकिस्तान का आकस्मिक भ्रमण भी उसी का परिणाम है. मोदी की इस आकस्मिक यात्रा के परिणाम चाहे जो भी हो यह तो स्पष्ट है की मोदी ने पाकिस्तानी सत्ता  के एक स्तम्भ को साध लिया है.वस्तुतः पाकिस्तान में सत्ता के तीन केंद्र हैं इस्लामाबाद(जिसके मुखिया नवाज़ शरीफ़ हैं), रावलपिंडी (जिसके प्रमुख जनरल राहील  शरीफ़ हैं) और कट्टरपंथी व अतिवादी आतंकी संगठन जैसे अल-कायदा,जैश-ए-मुहम्मद तथा पाकिस्तानी तालिबान भी इसी  श्रेणी में आते हैं।यही कारण है कि भारत की  ओर से अत्यधिक प्रयास के बावज़ूद पाकिस्तान के इन आला हुक्मरानो, जिनकी रोजी रोटी भारत विरोध के दम पर ही चलती है , ने हर बार ऐसे मौको को भुनाने की कोई कोशिश नहीं की।
१९९९० में अटल जी जब दिल्ली से लाहौर बस लेकर गए थे तो उसके रिटर्न गिफ्ट में हमें कारगिल मिला था।  तो क्या  हमें किसी ऐसे ही पीठ में छुरा घोंपने वाली स्थिति का सामना करना पड़ सकता है अथवा संजय राउत के अनुसार नवाज़ साहब मोदी जी को रिटर्न गिफ्ट में हाफ़िज़ सईद या दाऊद इब्राहिम को हमें सौप देंगे। यह देखना वाकई रोचक होगा की इस अप्रत्याशित भेंट की परिणति क्या होती है ?
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